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संतुलन भी तो यहाँ दरकार है…

भोर की प्रतीक्षा में ...
भोर की प्रतीक्षा में ...
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जीवन में हर कदम पर जन्म से मृत्यु पर्यन्त संतुलन की जरूरत पड़ती है| संतुलन के आभाव में डगमगाना निश्चित है| प्रकृति ने भी यही सन्देश दिया है| पेड़ भी घने और विशाल तब बनते हैं जब उनकी जड़ें धरती को मज़बूती से जकड़ लेतीं हैं,पहले तना अपना कठोर आकार लेता है कि शाखाओं का भार उठा सके,फिर शाखाएं अपने आपको पत्ते ,फूल एवं फलों के योग्य बनातीं हैं| इसी तरह ऋतुएं धरती के पर्यावरण को संतुलित करतीं हैं|

प्राचीन काल में संतुलन लोगों की दिनचर्या में बसा हुआ था| पर्याप्त शारीरिक श्रम के बाद ही संतुलित आहार| ऋतू के अनुसार फल एवम सब्जियां उपलब्ध होतीं थीं|तीज त्यौहार पर ही पकवान बनते थे | आजकल बढती हुई बीमारियाँ श्रम और आहार के असंतुलन का परिणाम हैं| दूसरी एक बजह बीमारियों की, उपज और आवश्यकता का असंतुलन भी है,जिसने अधिक फसल की चाह में केमिकल और पेस्टिसाइड के उपयोग को उकसाया|ज्यादा पैसा कमाने की चाह ने मनुष्य से ईमानदारी और नैतिकता छीन ली|
अगर रिश्तों की आत्मीयता और कमाई की व्यस्तता में असंतुलन हुआ तो विच्छेद तक हो जाते हैं| बच्चों के पालन पोषण में लाड प्यार और अनुशासन में भी संतुलन रखना जरूरी होता है, नही तो बच्चों को बिगड़ते देर नहीं लगती| बच्चों को हांथखर्च न इतना अधिक हो कि वो पैसे का महत्व न समझें और न इतना कम कि वो कुंठित हो कर चोरी करने लगें| उनको अपनी जरूरतों पर नियंत्रण रखना आना चाहिए|
इसी प्रकार व्यबहार में भी संतुलन जरूरी होता है| व्यवहार के अति मधुर या अति कठोर होने पर संवंध प्रभावित होते हैं| परिस्थिति के अनुरूप व्यबहार करने वाला व्यक्ति व्यवहार कुशल कहलाता है|

वाणी का संतुलन भी आवश्यक है| अक्सर आवश्यकता से अधिक या कम बोलना अवांछनीय होता है |यद्दपि यह व्यक्ति की कुदरती फ़ितरत होती है परन्तु प्रयत्न कर के थोड़ा बहुत बदलाव लाया जा सकता है|

अर्थव्यवस्था चाहे घर की हो या देश की उसमे भी संतुलन होना जरूरी है|अगर आय कम है तो घर के खर्चों में संतुलन और अगर आय अधिक है तो उसके निवेश,विनियोग एवं उचित संचयन में संतुलन| आय का असंतुलन समाज में विरोधाभास पैदा करता है |कोई भी फैलाब अचानक होता है तो वो या तो नासूर होता है या सैलाब होता है , भ्रष्ट्राचार से कमाया गया पैसा जब घर में आता है तो विलासता का प्रवेश होता है,और फिर बुरी आदतों का आकार नासूर का रूप ले लेता है| पुरानी कहावत है ‘कि पूत कपूत तो क्यों धन संचय ,पूत सपूत तो क्यों धन संचय’ फिर भी नेता लोग देश का धन संचय कर रहे हैं, जिससे उनकी आने वाली पीढियां लाभान्वित होतीं रहें| उधोगपतियों से चुनाव का चंदा लेने के लिए वो उनके हित में योजनाएं एवं कानून बनाते हैं| नतीजतन देश में गरीब ज्यादा गरीब और अमीर ज्यादा अमीर होते जा रहे हैं|महानगरों में जीविका अर्जन करना दुष्कर होता जा रहा है|महंगाई बढ़ रही है क्यों की मांग और पूर्ति का संतुलन बिगड़ रहा है इसका सबसे ज्यादा असर आम आदमी पर पड़ रहा है| वो भौतिकता की होड़ में दौड़ रहा है ,आपसी रिश्ते नजरंदाज हो रहे हैं |

दौड़ में सब लोग शामिल हो गए ,
रिश्ते नाते भीड़ में सब खो गए
सोते बच्चे छोड़ निकला था सुबह ,
रात जब लौटा तो बच्चे सो गए |
ये तो महानगर में रहने वाले मध्यम वर्गीय आदमी की कहानी है लेकिन उच्च वर्गीय लोग भी आपस में प्रेम एवं सहिष्णुता के सुख को छोड़ कर ५ सितारा होटलों जैसी आधुनिक जीवन शैली अपना रहे हैं| बच्चों को व्यस्त रखने के लिए उनके पास तमाम आधुनिक गेजेट हैं, जैसे स्मार्ट फोन, कम्प्यूटर,आईपोड इत्यादि|

ये तरक्की का सुखद अवतार है ,
अविष्कारों का बड़ा आभार है
प्यार कम और शौक सुविधाएं अधिक ,
संतुलन भी तो यहाँ दरकार है…

निर्मला सिंह गौर

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