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मोह —निर्मला सिंह गौर की कविता

भोर की प्रतीक्षा में ...
भोर की प्रतीक्षा में ...
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मोह की दीवार पर आसन्न हम
कंकडों की चुभन को सहते रहे
थे अधर मुस्कान से परिचित मगर
अश्रु भी नयनो तले बसते रहे |
.
हम सदा कर्तव्य पालन में रहे
वार खाकर भी डटे रण में रहे
दर्द की करते रहे अवहेलना
घाव रह रह कर मगर रिसते रहे
अश्रु भी नयनो तले बसते रहे |
.
हम नहीं अनभिज्ञ थे संघर्ष से
कुटिलताओं से रचे आदर्श से
आगमन उत्सव है तो प्रस्थान भी
किन्तु स्मृति सर्प तो डसते रहे
अश्रु भी नयनो तले बसते रहे |
.
स्वजन हित की खोज में आसक्त हम
किस महात्मा के हुए अभिषप्त हम
जिस घड़ी ठोकर से हम मूर्छित हुये
करके अवलोकन स्वजन हँसते रहे
अश्रु भी नयनो तले बसते रहे |

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