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ओ ! पतझड़ के अंतिम त्रण, तुमने देखा है युग दर्पण
तुमने देखी है ज्योतिस्ना, तुमने देखा है चंद्रग्रहण
…ओ ! पतझड़ के अंतिम त्रण|
तुमने देखे हैं जन्मोत्सव , तुमने देखे हैं दाह कर्म
तुमने देखी है लूटमार, तुमने देखे हैं दान धर्म
तुमने देखी है बाढ़ कहीं, तुमने देखा सूखा अकाल
तुमने देखा है अनुद्धत , तुमने ही देखा है धमाल
कैसे होता है नियम भंग, कैसे होता है अनुशासन
ओ ! पतझड़ के अंतिम त्रण |
कैसे निर्धन का धन लेकर, इठलाते हैं उद्योगपति
कैसे निर्बल शोषित होते, कैसे फलती है राजनीति
तुमने देखा है समझौता, तुमने देखा है आन्दोलन
धनवान सभी हैं लाभान्वित, निर्धन होते जाते निर्धन
कैसे मरता आयुष्यमान, कैसे जीता है मरणासन्न
ओ ! पतझड़ के अंतिम त्रण |
तुमने देखे संगी साथी धरती पर एक एक झरते
सन्नाटे में दस्तक देते ,निर्जीव, हवाओं में उड़ते
जन्मस्थल से अवसानो की यात्राओं का मंजर देखा
बालपन से ब्रद्धावस्ता तक तन होते जर्ज़र देखा
तुमने देखी है तरुणाई , तुमने ही देखा है बचपन
ओ ! पतझड़ के अंतिम त्रण |
देखो तो अब कुछ रंग बदले नव अंकुर आये हैं बाहर
कुछ हवा चली है पश्चिम की , नव कोंपल पर है चढ़ा असर
क्या पता ये अंकुर अब तरु को किस ओर हांक ले जायेंगे
तुम तो एक दिन झर जाओगे , फल कैसे कैसे आयेंगे
पहचान न अपनी खो बैठे , भगवान् बचाए ये मधुवन
ओ! पतझड़ के अंतिम त्रण |
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