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दर्द का तन्हा सफ़र है —निर्मलासिंह गौर

भोर की प्रतीक्षा में ...
भोर की प्रतीक्षा में ...
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दर्द का तन्हा सफ़र है /
और धुंधुली सी नज़र है /
रास्ते  अंजान से हैं /
भटक जाने का भी डर है/ …दर्द का तन्हा सफ़र है |
रोज़ के कुछ ख़ास गम हैं/
फिर भी औरों से तो कम हैं /
दिल तस्सल्ली दे रहा है /
आंखें देखो फिर भी नम हैं /
किस से  अपना दर्द बांटे /
ये तो बेगाना शहर है / …दर्द का तन्हा सफ़र है |
तुम अकेले दूर मंजिल /
साथ बस यादों का जम्घट /
अपने दामन् को बचाना /
खार हैं फूलों की सूरत /
मोम के हैं पांव नाज़ुक /
और शोलों की डगर है/ …दर्द का तन्हा सफर है |
हाथ से फिसले हुए पल /
लौट कर आते नहीं हैं /
और उनकी मीठी यादें /
आप बिसराते नहीं हैं /
गुज़रे लम्हे याद करके /
क्यों भला ये आँखे तर हैं/…दर्द का तन्हा सफ़र है |
………………………………..निर्मल

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