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हम अपने घरों में महफूज़ हैं, खुशियाँ मनाते हैं
वो अपनी जान देकर देश का गौरव बढ़ाते हैं
हम अपने ऐश वैभव जब ज़माने को दिखाते हैं
वो सीमा पर खड़े सीने में ज़ख्मो को छुपाते हैं
शहीदों की अगर पग धूलि मिल जाये उठा लेना
अगर हो जाएँ आँखे नम तो माथे से लगा लेना|
जहाँ हैं भ्रष्ट नेता और जहाँ पथ भ्रष्ट है यौवन
जहाँ रुपयों की खातिर कर रहा है कत्ल बालापन
ये धरती अपनी संतानों पे अंतर मन में रोती है
जो मानव भेष में दानव हैं उनका बोझ ढोती है
मगर कुछ लाल हैं सच्चे ,जनम का ऋण चुकाते हैं
वतन के वास्ते हंस कर के अपनी जां लुटाते हैं
शहीदों के किये बलिदान का इतिहास पढ़ लेना
अगर हो जाएँ आँखे नम तो माथे से लगा लेना |
कहीं इक शाम ढलती है तभी इक दिन निकलता है
किसी का अंत जनहित के लिए अनिवार्य होता है
वो बूढी आँखे कैसे भेजतीं हैं ‘लाल’ को रण में
कोई आकर तो देखे हाल उनका क्या है अब घर में
जो सुख बलिदान होता है, कहाँ होती है भरपाई
पदक लौटा नहीं सकते पिता , औलाद या भाई
अगर जो बन सको लाठी , बुढ़ापे की तो बन जाना
अगर हो जाएँ आँखे नम ,तो माथे से लगा लेना ||
निर्मला सिंह गौर
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