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अब भी है –निर्मला सिंह गौर की कविता

भोर की प्रतीक्षा में ...
भोर की प्रतीक्षा में ...
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गुलशनो पर बहार अब भी है
सल्तनत बरकरार अब भी है
सारथी दौड़ में शामिल तो नहीं
फिर भी रथ पर सवार अब भी है |

उसने बनवा लिया है शीश महल
फ़र्श से अर्श का किया है सफ़र
एक सच उसको याद हो शायद
वो मेरा कर्ज़ दार अब भी है |

भीड़ में भी बुज़ूद रखता है
वो फ़ासलों से ही गुज़रता है
उसको गुज़रे यहाँ से देर हुई
पर हवा खुशगवार अब भी है |

एक मुद्दत के बाद आये वो
सामने बैठे सर झुकाए वो
उनकी आँखों की नमी कहती थी
उनके दिल में मलाल अब भी है |

वक़्त तो अपना काम करता है
ज़ख्म करता है ,ज़ख्म भरता है
आदमी जीत ले दुनिया चाहे
वक़्त से जाता हार अब भी है ||

निर्मल

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