भोर की प्रतीक्षा में ...
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कभी फ़र्ज़ ने समझाई मुझे मेरी सरहदें
कभी तुमने ज़िदगी के मतलब बदल दिये ,
कभी वक़्त ने बुझाये उम्मीद के चिराग़
कभी तुम मिले तो राह में जुगनू से जल गये |
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कभी प्यार मिला इतना पल-छिन संवर गये
कभी नफ़रतों के झंडे सरेराह गड गए
कभी फूल गले मिल कर नश्तर चुभो गए
कभी ख़ार मिले ऐसे कुछ ज़ख़्म सिल गए ,
कभी तुम मिले तो राह में जुगनू से जल गए |
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कभी जमघटों में रह कर तन्हाई भा गयी
कभी तन्हा ज़िन्दगी की दहशत सता गयी
कभी बीच समुन्दर में किश्ती रही महफ़ूज़
कभी साहिलों पे आकर तूफ़ान मिल गए
कभी तुम मिले तो राह में जुगनू से जल गये||
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निर्मल
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