भोर की प्रतीक्षा में ...
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वक़्त-ए-गर्दिश में हमने पुकारा तुम्हें
जान जोख़िम में कर के चले आये तुम
हमने फूलों का रस्ता बताया मगर
देखा काँटों पे चल के चले आये तुम |
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जब बहारें महकने लगीं थीं यहाँ
तब पुकारा तो तुम थे न जाने कहाँ
जब खिज़ां ने यहाँ एक रख्खा क़दम
तो ये गुलशन बचाने चले आये तुम |
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जब मदद के लिए हमने दामन किया
तुमने सुख चैन अपना सभी भर दिया
जब हमें अपनी सासों के लाले पड़े
उम्र दामन में भर के चले आये तुम |
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ज़िन्दगी भर मिले और बिछुड़ते रहे
फूल खिलते रहे और बिखरते रहे
दाना पानी हमारा जहां से उठा
अश्क आँखों में भर के चले आये तुम |
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निर्मला सिंह गौर
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