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शहीदों के अमर वलिदान को श्रद्धांजली दे दें
जिन्होंने जान दी है उन फरिश्तों को दुआ दे दें |
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बड़े बेफ़िक्र हो कर जी रहे हम, मुल्क में अपने
नहीं देखें हैं आज़ादी के रण मे टूटते सपने,
नहीं देखी है हमने खून की बहती हुई गंगा
की मारा किस तरह रावण, जलाई किस तरह लंका ,
हुए हैं ज़ख्म जिनके उनको, थोड़ी सी दवा दे दें
जिन्होंने जान दी है उन फ़रिश्तों को दुआ दे दें |
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हिमालय की बुलंदी कर रही थी ध्यान आकर्षित
कि देखो कारगिल की सरजमीं में बस रही दीमक’
उठाये शस्त्र, कूदे रण में भारत माता के प्यारे
कि दिन के वक्त सारे दुश्मनों को दिख गये तारे ,
चलो हम सर झुका कर शुक्रिया उनका अदा कर दें
जिन्होंने जान दी है , उन फ़रिश्तों को दुआ दे दें |
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वो जिनके लाल खोये हैं, उन्हें थोड़ा सहारा दें ,
पिता जिनके हैं बिछुड़े, उनको भी जाकर के बहला लें,
हमे दे शक्ति ईश्वर, हम शहीदों के दुलारों की
भंवर में आ गयी किश्ती, उसे कोई किनारा दें,
तिरंगे से कहो, श्रद्धांजली के पुष्प बरसा दे ,
जिन्होंने जान दी है , उन फरिश्तों को दुआ दे दें ||
………………………………………………………निर्मला सिंह गौर
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