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याद आएगी तुम्हारी मुस्कुराहट सुबह शाम
बाद मुद्दत के मिलो तो, मुस्कुरा देना ज़रा
अबके बिछुड़े कब मिलेंगे वक़्त ही बतलायेगा
वक़्त-ए-फ़ुर्सत याद करना, मुस्कुरा देना ज़रा |
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कोई तारा आसमां से टूट कर गिर जाये तो
या कोई गुल खिलने से पहले ही मुरझा जाये तो
याद मत करना हमारी ऐसा मंज़र देख कर
तुम तो बस इक काम करना, मुस्कुरा देना ज़रा |
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जब शमा बुझ जाए और बाक़ी अँधेरी रात हो
जब नहीं काबू में अपने आपके ज़ज्बात हों
जब ख़बर पहुंचे हमारी, रो नहीं देना कहीं
अश्क मत बर्बाद करना ,मुस्कुरा देना ज़रा |
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मत बढ़ाना अपना दामन जब कफ़न की फ़िक्र हो
मत चढ़ाना फूल जब रस्मो-चलन का ज़िक्र हो
तुम नहीं आना जलाने शम्मा मेरी कब्र पर
क़ीमती सौगात देना , मुस्कुरा देना ज़रा |
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लोगों का जो काम है ,वो कर दिखायेंगे ज़रूर
हर गली में एक अप्साना बनायेंगे ज़रूर
और पूछेंगे हसीं रुख्सार क्यों है ग़मज़दा
बात को तुम मत बढ़ाना ,मुस्कुरा देना ज़रा
………………………………………………..निर्मला सिंह गौर
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