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कैसा है ये उत्थान …निर्मला सिंह गौर

भोर की प्रतीक्षा में ...
भोर की प्रतीक्षा में ...
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कैसा है ये उत्थान जहाँ शांत है बचपन
नादानियों शैतानियों का ज़ोर नहीं है
संगीत के नए नये आयाम बहुत हैं
बच्चों की चुलबुलाह्टों का शोर नहीं है |
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कैसा है ये उत्थान जहाँ कृष्ण है गुमसुम
मुरली भी नहीं है यहाँ मक्खन भी नहीं है
ना नन्द को फुरसत है ना ख़ाली है यशोदा
कंधों पे पढाई का बोझ कम भी नहीं है |
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कैसा है ये उत्थान जहाँ क्षुब्ध है यौवन
जीवन का लक्ष्य भी इन्हें मालूम नहीं है
अश्लीलता और ड्रग्ज ने गुमराह किया है
पूरब भी नहीं है यहाँ पश्चिम भी नहीं है |
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कैसा है ये उत्थान कि हर ओर प्रदूषण
पक्षी भी नहीं हैं यहाँ जंगल भी नहीं हैं
हर साँस को लाले पड़े हैं शुद्ध पवन के
और प्यास बुझाने को यहाँ जल भी नहीं है |
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कैसा है ये उत्थान जहाँ जिंदगी है गुम
अस्तित्व और व्यक्तित्व की पहचान नहीं है
सड़कों पे वाहनों की तरह भागता मानव
है यंत्रवत ऐसा कि उसमे जान नहीं है |
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कैसा है ये उत्थान ????????????
निर्मल .

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