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माँ मेरी …निर्मला सिंह गौर

भोर की प्रतीक्षा में ...
भोर की प्रतीक्षा में ...
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मेरी ज़िद जब जब मेरे आड़े आई है
माँ मेरी सच मुच मैंने ठोकर खाई है
भटका हूँ भूखा पूरे दिन जब भी मैंने
तेरे हाथ की परसी थाली ठुकराई है
माँ मेरी सच मुच मैंने ठोकर खाई है |
.
जब भी दुनिया ने मुझको बेबात सताया
आंसू पी कर तुझको मैं कुछ कह ना पाया
ममता का स्पर्श मेरे मस्तक पर दे कर
तूने अनकहे अंतर पीड़ा सहलाई है
माँ मेरी सच मुच मैंने ठोकर खाई है |
.
ठोकर खा कर जब भी मैंने चोट छुपाई
चेहरे पर भी दर्द नहीं ,मुस्कान सजाई
पर जैसे ही तुझ से मैंने आँख मिलाई
तेरी आँखें माँ मैंने भीगी पाई हैं
माँ मेरी सच मुच मैंने ठोकर खाई है .
…………………………………….निर्मल

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