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बेटियां — निर्मला सिंह गौर

भोर की प्रतीक्षा में ...
भोर की प्रतीक्षा में ...
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बेटियां मिटटी के दियों की तरह होतीं हैं
कहीं लेती हैं जन्म और कहीं जलतीं हैं |
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कुम्हार कैसे क़रीने से दिया गढ़ता है
आग में रखता है तब उस पे रंग चढ़ता है
कोई ले जाता है मंदिर में सजाने के लिए
कोई कोई तो उसे सोने से मढ़वाता है
चार पल दूसरे के घर की रौशनी के लिए
ये दिया आग को माथे पे सजा लेता है
बेटियां मिटटी के दीयों की तरह होतीं हैं |
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बेटियां बाग़ के फूलों की तरह होतीं हैं
कही खिलतीं है और खुशबू कहीं देती हैं
बगवां कैसे संजोता है कली का बचपन
धूप और तेज़ हवाओं से बचाता हरदम
कोई ले जाता है मंदिर में जगह देता है
कोई पैरों के तले रख के कुचल देता है
एक छोटी सी उम्र और एक अन्जान सफ़र
फूल कुछ लम्हों में ही उम्र को जी लेता है
बेटियां बाग़ के फूलों की तरह होतीं हैं |
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बेटियां बर्फ की घाटी की तरह होतीं हैं
जब पिघलतीं हैं तो भागीरथी बन जातीं हैं
उम्र भर जंगलों और पत्थरों से टकराकर
आप ही अपने मुक़ददर से लड़ा करतीं हैं
कितनी ही बस्तियां बसतीं हैं किनारे उनके
कितने खेतों को सींचतीं हुई बह जातीं हैं
उनका अपना बुज़ूद रहता तभी तक क़ायम
जब तलक़ वो न समुन्दर में समां जातीं हैं |
बेटियां बर्फ की घाटी की तरह होतीं हैं .|
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बेटियां काली घटाओं की तरह होतीं हैं
जब बरसतीं हैं तो धरती को हरा करतीं हैं
आसमां देर तक उनको नहीं रख पाता है
धूम से बिजलियाँ चमका के विदा करता है
धरती पलकें बिछाये करती है स्वागत उनका
और मौसम भी खुश गवार सा हो जाता है
एक दिन धरती के सीने में समां जातीं है
कहीं होतीं हैं जवां, कहीं फ़ना होतीं हैं |
.बेटियां काली घटाओं की तरह होतीं हैं |
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बेटियां दीप हैं, कलियाँ हैं, बर्फ ,बादल हैं
आपके हाथ से टूटें ना, बहुत कोमल हैं
इनकी क़िस्मत मे कल कहाँ का सफ़र तय होगा
बेटियां आपके घर गैर की धरोहर हैं ||
………………………………………………निर्मल

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