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मै दीपक प्रज्वलित ,आल्हादित ,
अपना अंतर्मन सुलगा कर,
करता हूँ आकाश प्रकाशित ,
तुमने स्वर्ण पत्र मढ़ डाला ,
मिटटी के बेढब से तन को ,
किन्तु झांक कर देखा है क्या ,
मेरे तल के स्थिर तम को |
.
जब जलता हूँ घर के द्वारे ,
हो जाते हैं पथ उजयारे,
अंधकार के काले साये ,
भगते हैं सब डर के मारे|
.
फिर भी हूँ बिक्षुब्ध ज़रा सा ,
दूर तलक तो है उजियारा ,
किन्तु कभी ना मिट पायेगा ,
मेरे पहलू का अँधियारा |
.
इतना अनुभव तो है मेरा ,
अगर बुराई का हो डेरा ,
उसे मिटाना है तुमको तो ,
कुछ तो आखिर करना होगा ,
थोडा सा तो जलना होगा |
.
मेरे सारे भाई सज गये
हर घर में मन रही दिवाली ,
लक्ष्मीजी के आवाहन को
सबने सिर पर आग सजा ली ,
हार गया है दीपोत्सव से ,
अमावस्य का काला साया ,
किन्तु कभी ना मिट पायेगा ,
मेरे पहलू का अँधियारा |
.
तुमने ईश्वर के सम्मुख रख ,
रोज़ किया सम्मानित मुझको ,
मिटटी का कण बना सितारा ,
किन्तु मिटा ना पाए भगवन,
मेरे पहलू का अँधियारा ||
.
सभी साथियों को दीपावली की हार्दिक शुभ कामनाएं —निर्मल
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